भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

किसी काम का नहीं जगत में / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:52, 3 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

किसी काम का नहीं जगत में, हूँ मैं केवल ‘भू’-का भार।
केवल एक विलक्षण है सौभाग्य, तुम्हारा पाया प्यार॥
पर यह है शुचि सहज तुम्हारा बिरद, तुम्हारा सहज सुभाव।
हो तुम सुहृद अहैतुक सबके सबको देते मीठे भाव॥
इतनी कृपा करो अब मुझपर, परम कृपामय हे सरकार।
मधुर तुम्हारा स्मरण बने, बस, मेरा एक जीवनाधार॥
मान करूँ मैं सदा तुम्हारा, सुनूँ तुम्हारा ही गुण-गान।
रोम-रोम नित जपे तुम्हारा नाम मधुर मेरे भगवान॥