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नाथ! हौं निपट निरंकुस नीच / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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नाथ! हौं निपट निरंकुस नीच।
नरक-कीट मैं पर्यौ रहौं नित पाप-तापके कीच॥
करौं भगति की बात मनोहर, भीतर भरे बिकार।
अंतरजामी तुमहू तें मैं करौं कपट-यौहार॥
निज सुभावबस, नाथ दयाकर! पकरि उधारौ हाथ।
पाप-प्रबाह पतित पामर कौं करौ, कृपालु! सनाथ॥