भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नाथ! हौं निपट निरंकुस नीच / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 3 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाथ! हौं निपट निरंकुस नीच।
नरक-कीट मैं पर्‌यौ रहौं नित पाप-तापके कीच॥
करौं भगति की बात मनोहर, भीतर भरे बिकार।
अंतरजामी तुमहू तें मैं करौं कपट-यौहार॥
निज सुभावबस, नाथ दयाकर! पकरि उधारौ हाथ।
पाप-प्रबाह पतित पामर कौं करौ, कृपालु! सनाथ॥