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बना दो बुद्धिहीन भगवान / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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बना दो बुद्धिहीन भगवान।
तर्क-शक्ति सारी ही हर लो, हरो ज्ञान-विज्ञान ।
हरो सभ्यता , शिक्षा, संस्कृति, नये जगतकी शान॥
विद्या-धन-मद हरो, हरो हे हरे! सभी अभिमान।
नीति-भीतिसे पिंड छुड़ाकर करो सरलता दान॥
नहीं चाहिये भोग-योग कुछ, नहीं मान-समान।
ग्राम्य, गँवार बना दो, तृण-सम दीन, निपट निर्मान॥
भर दो हृदय भक्ति-श्रद्धासे करो प्रेमका दान।
प्रेमसिन्धु! निज मध्य डुबाकर मेटो नाम-निशान॥