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प्रभु तव चरन किमि परिहरौं / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्रभु तव चरन किमि परिहरौं।
ये चरन मोहि परम प्यारे, छिन न इन ते टरौं॥
जिन पदनकी अमित महिमा, वेद-सुर-मुनि कहैं।
दास संतत करत अनुभव, रहत निसि-दिन गहैं॥
परसि जिनको सिला तेहि छिन बनी सुंदरि नारि।
घरनि मुनिवरकी अहल्या, सकौं केहि विधि टारि॥
इन पदन-सम सरन असरन दूसरौ को‌उ नाहिं।
हो‌इ जो को‌उ तुम बतावहु, धा‌इ पकरौं ताहि॥
और बिधि नहिं टरौं टार्‌यौ, हो‌इ साध्य सु करौं।
जल-जगत मकरंद-‌अलि ज्यौं, मनहि चरनन्हि धरौं॥