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घास की पुस्तक / अर्सेनी तर्कोव्‍स्‍की

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अरे नहीं, मैं नगर नहीं हूँ नदी किनारे कोई क्रेमलिन लिये
मैं तो नगर का राजचिह्न हूँ।
राजचिह्न भी नहीं
मैं उसके ऊपर अंकित तारा मात्र हूँ,


रात के पानी में चमकती छाया नहीं
स्‍वयं तारा हूँ।

मैं उस तट की आवाज नहीं हूँ
पहरावा भी नहीं हूँ उस पार के देश का।
तुम्‍हारी पीठ पीछे रोशनी की किरण नहीं
मैं युद्ध में नष्‍ट हुआ एक घर हूँ।

चोटी पर खड़ा नवाबों का घर नहीं
मैं याद हूँ तुम्‍हारे अपने घर की।

नियति द्वारा भेजा मित्र नहीं हूँ
मैं तो कहीं दूर चली गोली की आवाज हूँ।
मैं जाऊँगा समुद्री स्‍तैपी की ओर
गिर पड़ूँगा आर्द्र धरती पर।

नन्‍हीं घास की पुस्‍तक बन जाऊँगा
गिर पड़ूँगा मातृभूमि के पाँवों पर।