भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूल पर बैठा हुआ भँवरा / गुलाब सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:26, 4 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

फूल पर
बैठा हुआ भँवरा
शाख पर गाती हुई चिड़िया
घास पर बैठी हुई तितली
और तितली देखती गुड़िया
हमें कितने
दिन हुए देखे !

घाट के
नीचे झुके दो पेड़
धार पर ठहरी हुई दो आँख
सतह से उठता हुआ बादल
और रह-रह फड़कती दो पाँख
हमें कितने
दिन हुए देखे !

बाँह-सी
फैली हुई राहें
गोद-सा वह धूल का संसार
धूल पर उभरे हुए दो पाँव
और उन पर बिछा हरसिंगार
हमें कितने
दिन हुए देखे !


घुप अँधेरे
में दिए की लौ
दिए जल पर भी जलाते लोग
रोशनी के साथ बहती नदी
और उससे नाव का संयोग
हमें कितने
दिन हुए देखे !