भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मौत / अनुलता राज नायर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 5 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुलता राज नायर |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
1.
मौत कितनी आसान होती
अगर हम जिस्म के साथ
दफ़न कर पाते
यादों को भी...
2.
मौत कुदरत का तोहफा है
ये मिटा देती है
सभी दर्द...
उसके, जो मरा है...
3.
मौत अकसर भ्रमित होती है.
आती है उनके पास
जो जीना चाहते हैं...
और उन्हें पहचानती नहीं
जो जी रहे हैं मुर्दों की तरह.
4.
मौत जब किसी
पाक रूह को ले जाती है...
तब ज़रूर उसे
जी कर देखती होगी...
5.
मौत से मुझे
डर नहीं लगता
उसे लगता है डर
मेरी मौत से...
6.
मौत का दुःख
अकसर एक सा नहीं होता...
कौन मरा ?
कैसे मरा?
कब मरा?
पहले सब हिसाब किया जाता है...