भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता / अनुलता राज नायर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:50, 5 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनुलता राज नायर |अनुवादक= |संग्रह= ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौसम का मिजाज़ खरा नहीं लगता
सावन भी इन दिनों हरा नहीं लगता.

एक प्यास हलक को सुखाये हुए है
पीकर दरिया मन, भरा नहीं लगता.

चमकता है सब चाँद तारे के मानिंद
सोने का ये दिल खरा नहीं लगता.

अपने ही घर में अनजान से हम
अपना सा कोई ज़रा नहीं लगता

हैवानों से भरी ये दुनिया तेरी है
कि कोई भी इंसा बुरा नहीं लगता.

सुनता नहीं वो मेरी, इन दिनों
कहते है जिसको खुदा,बहरा नहीं लगता.