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कृष्ण-अंग-लावण्य मधुरसे भी सुमधुरतम / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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कृष्ण-अंग-लावण्य मधुर से भी सुमधुरतम।
उसमें श्रीमुख-चन्द्र परम सुषमामय अनुपम॥
मधुरापेक्षा मधुर, मधुरतम उससे भी अति।
श्रीमुखकी मधु-सुधामयी, ज्योत्स्नामयि सुस्मिति॥
इस ज्योत्स्ना-स्मिति मधुरका एक-एक कण अति मधुर।
होकर त्रिभुवन व्याप्त जो बना रहा सबको मधुर॥