भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जयति जय गोप्रेमी गोपाल / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:02, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जयति जय गोप्रेमी गोपाल।
ठाढ़े मधुर मनोहर कमल-सरोबर-तट नँदलाल॥
नील स्याम उज्ज्वल आभा, कर मुरली गल बनमाल।
रत्न-मयूर-मुकुट, कुंचित कच कृस्न, तिलक बर भाल॥
पीत बसन, भूषित अँग भूषन, मोहन नैन बिसाल।
अरुन कमल कर बाम सुसोभित, नूपुर चरन रसाल॥
परस पाइ सुचि स्याम अंग सुखमग्र सुरभि ततकाल।
रही अचल पाहन-मूरति-सी भूलि जगत-जंजाल॥