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हरत मन-माधव कंचन-गोरी॥ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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हरत मन-माधव कंचन-गोरी॥
राधा अनियारे-रतनारे लोचन सौं, कछु भौंह मरोरी।
पग-पैंजनि, दो‌उ चरन महावर, करधनि-धुनि मनु मधु-रस घोरी॥
दरपन कर, सोहत मुकता-मनि-हार हृदै, मृदु हँसनि ठगोरी।
नैननि बर अंजन मन-रंजन, चिा-बिा-हर नित बरजोरी॥
नील बसन, सरदिंदु बदन-दुति, बेंदी सेंदुर-केसर-रोरी।
सहज मथत मन्मथ-मन्मथ मन दिय छटा वृषभानु-किसोरी॥