भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दो‌ऊ सदा एक रस पूरे / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:09, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दो‌ऊ सदा एक रस पूरे।
एक प्रान, मन एक, एक ही भाव, एक रँग रूरे॥
एक साध्य, साधनहू एकहि, एक सिद्धि मन राखैं।
एकहि परम पवित्र दिय रस दुहू दुहुनि कौ चाखैं॥
एक चाव, चेतना एक ही, एक चाह अनुहारै।
एक बने दो एक संग नित बिहरत एक बिहारै॥