भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जयति जय जयति रस-भाव-जोरी / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:17, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जयति जय जयति रस-भाव-जोरी।
नील घन स्याम अभिराम, मुनि-मन-हरन,
दुति करन ज्योति राधा किसोरी।
पीत पट ललाम छबिधाम सुचि, नील-बरन,
स्वर्न-तन राजत, डारत ठगोरी॥
स्याम-छबि निरखत अनिमेष राधा सतत,
स्तध मनु देखि ससधर चकोरी।

राधा-मुख-कमल लखि मा स्यामसुंदर-दृग-
भृंग रस-पान-रत अमिय घोरी॥
सखियन अति भीर जुरी, जुगल रूप निरखन कौं,
रहीं सब चकित चित, तृनहि तोरी।
राधिका-माधव द्वै लसत, मन बसत नित,
ह्वै रही प्रेमबस देह मोरी॥