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सखनि सँग खेलत दो‌ऊ भैया / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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सखनि सँग खेलत दो‌ऊ भैया।
रुचिर खेल बहु भाँति, मुदित मन दा‌ऊ, कुँअर कन्हैया॥
धावत मिलि गैयन के पाछें, बोलत ’हैया-हैया’।
ईस्वरपनौ बिसारि, अग्य-से नाचत ’ताता-थैया’॥
कोमल किसलय ले‌इ बना‌ई एक नैक-सी नैया।
ला‌इ तराय द‌ई जमुना में हँसि-हँसि जात बलैया॥
डूबन लगी तरी जल में तब, ’हा मैया, री मैया’।
लगे पुकारन-’नारायन ! अब तुम ही बनौ खेवैया’॥
लरत कबौं, रूठत, रिझवत, पुचकारत दै गलबैयाँ।
धन्य-भाग्य ये हरि के प्यारे नैक-नैक-से छैयाँ॥