भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुर्मति दैत्य महाबलने आ / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:05, 6 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुर्मति दैत्य महाबलने आ, नन्द-भवनमें किया प्रवेश।
हाथ लिये पचाङङ्ग, रामनामी ओढ़े, शुचि ब्राह्माण-वेश॥
झूल रहा यजोपवीत कंधेपर, भस्म त्रिपुण्‌ंड्र सुभाल।
गले भव्य रुद्राक्ष-हार शुभ, पाण्डित्योचित मन्थर चाल॥
आदर किया सभीने नन्द-महलमें उसको पण्डित जान।
अर्घ्यासन मधुपर्क दानकर बैठाया सादर, सहमान॥
परिचय दे ज्योतिषका, उसने पूछा शिशुका जन्म-सु-काल।
बना कुण्डली, हो गभीर, लगा बतलाने फल तत्काल॥
कहा-’मूलमें जन्मा है यह, कर देगा कुलको निर्मूल।
गोकुलको पहुँचा पताल, यह सबके उर बेधेगा शूल॥
होली करके गोत्रमात्रकी, कर देगा सब वंश-विनाश।
अतः इसीमें है मङङ्गल, कर दिया जाय इसका ही नाश॥
ड्डेंका जाय घोर वनमें, या गाड़ा जाय भूमिको खोद।
बालक नहीं, काल है सबका, अशुभ अमङङ्गल विगत-विनोद’॥
सुन कर्कश वाणी दानवकी, हु‌ए सभी नर-नारि उदास।
भडक़ उठा क्रएधानल सबके, तुरत बढ़ चला श्वासोच्छ्‌‌वास॥
सुनते ही दुर्वचन, अचेतन भी हो उठे तुरत विक्षुध।
व्याप्त चेतनाने उनको भी ’देने दण्ड’ कर दिया क्रुद्ध॥
मटकी छींके टँगी गिरी आ दानवके सिर तुरत धड़ाम।
बेलन चला, आ घुसा मुखमें, बिगड़ गयी हुलिया बेकाम॥
सिलबट्टा झट उठा, धड़ाधड़ किया पीटना जो आरभ।
भगा महाबल चिल्लाता-रोता अति, लगा छिपाने दभ॥
खटिया खड़ी रोककर पथको, मूसलने उठ मारी मार।
पीठ पटा कर दी दानवकी, चीख उठा कर करुण पुकार॥
दम ड्डूला, गिर पड़ा भूमिपर, पोथी-पत्रे फटे तमाम।
असत्‌‌ जने‌ऊ टूटी, मिटे तिलक, हो गया शोकका धाम॥
पण्डितको यह मिली दक्षिणाकी जब देखी भारी पोट।
लोट-पोट हो हँसे नारि-बालक, बूढ़ोंने हँस ली ओट॥