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मज़दूरों का गीत / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'

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जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।
कला कौशल खेती व्यापार,
हवाई यान, रेल या तार ।
सभी के एकमात्र आधार,
हमारे बिना नहीं उद्धार ।।
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।

रत्नगर्भा से लेकर रत्न,
विश्व को हमने बीहड़ वन सयत्न ।
काटकर बीहड़ वन अभिराम,
लगाए रम्य रम्य आराम ।
झोंपड़ी हो या कोई महल,
हमारे बिना न बनना सहल ।।
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।

किसा का लिया नहीं आभार,
बाहुबल रहा सदा आधार ।
पूर्ण हम संसृति के अवतार,
हमारे हाथों बेड़ा पार ।।
उठाया है हमने भू-भार,
हुआ हमसे सुखमय संसार ।
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।

हाय ! उसका यह प्रत्युपकार,
तुच्छ हमको समझे संसार ।
बन गए कितने ठेकेदार,
भोगने को सम्पत्ति अपार ।।
हमारा दारून हा-हाकार,
उन्हें हैं वीणा की झनकार ।
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।

भाग्य का हमें भरोसा दिया,
विभव सब अपने वश में किया ।
जहाँ तक बना रक्त पर लिया,
वज्र की छाती, पत्थर हिया ।
किसी ने ज़ख़्मेदिल कब सिया,
जिया दिल अपना पर क्या जिया ।
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।

दिया था जिनको अपना रक्त,
प्राण के प्यासे वे बन गए ।
नम्रता पर थे हम आसक्त,
और भी हमसे वे तन गए ।।
हाय रे स्वार्थ न तेरा अन्त,
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।

बहुत सह डाले हैं सन्ताप,
गर्दनें काटीं अपने-आप ।
न जाने था किसका अभिशाप,
न जाने किन कृत्यों का पाप ।।
हो रही थीं आँखें जो बन्द,
पद-दलित होने को सानन्द ।
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।

रचेंगे हम अब नव संसार,
न होने देंगे अत्याचार ।
प्रकृति ही का लेकर आधार,
चलाएँगे सारे व्यवहार ।।
सिद्ध कर देंगे बारम्बार,
और देखेगा विश्व अपार ।
जगत के केवल हम कर्त्तार,
हमीं पर अवलम्बित संसार ।।