भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
और तुम / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:22, 28 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अक्सर
राशन की चीनी की तरह
हो जाती है तुम्हारी हँसी
तिलमिला उठता हूँ तब
मुट्ठियाँ भींच लेता हूँ
चुप्पी साध लेता हूँ
क्या करूँ - क्या करूँ की तर्ज पर
यहाँ-वहाँ बेवजह डोलता हूँ
तुम कहती हो !
कुछ नहीं, कुछ नहीं
सब ठीक हो जाएगा जल्द
इसी आस में बस जला-भुना रह जाता हूँ
कोई छू कर देखे मुझे तब
जल जाए
मैं चाह कर भी नहीं हटा पाता
उन कारणों को
जो तुम्हारी हँसी पर
परमिट जारी कर देते हैं
और तुम
किसी कुशल कारीगर की तरह
दिन-रात जुटी रहती हो
जीवन बुनने में।