भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डरना मत / रेखा चमोली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:09, 28 जनवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेखा चमोली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे बच्चों !
तुम
डर मत जाना
सच कहने से
मैं हमेशा
नहीं रह सकती
तुम्हारे पास
हर बात बताने, कहने को
घबराना मत अँधेरे से
अपनी आँखें फैला लेना
जरा सी आहट होने पर
चौकन्ना हो जाना
तुम्हें दृढ़ और मजबूत बनना है
पर अपने भीतर बचाए रखना
वो ही कोमलता
जो एक बीज
छुपाए रखता है फूल होने तक
मैं कभी-कभी तुम्हारे साथ कठोर हो जाती हूँ
तुम्हारे छोटे-छोटे दर्दों को अनदेखा करती हूँ
तो सिर्फ इसलिए
कि जब तुम निकलोगे
घर से बाहर
मेरे बिना
तो ये दुनिया
जो हमेशा से
बँटी रही है
दो भागों में
       कमजोर और ताकतवर
       स्त्री और पुरूष
       गरीब और अमीर
       बुरी और भली
       दयालु और क्रूर
तुम्हें आजमाएगी
तुम उस समय भी
सबसे बुरे समय में भी
डरना मत
सच कहने से।