खुलने लगेगा, जब
अँधेरे के
जिस्म का पोर-पोर
चटक उठेगी
दर्द की हर कली, तब
सूनी आँखों में
उतर आयेगा
यादों का सैलाब
और
मेरे अंतकरण की टीस
दूर तक गूँजती चली जायेगी...
शायद
कोई गूँज तुम्हें
मेरे दर्द का अहसास दिला
मुझ तक ले आये।
खुलने लगेगा, जब
अँधेरे के
जिस्म का पोर-पोर
चटक उठेगी
दर्द की हर कली, तब
सूनी आँखों में
उतर आयेगा
यादों का सैलाब
और
मेरे अंतकरण की टीस
दूर तक गूँजती चली जायेगी...
शायद
कोई गूँज तुम्हें
मेरे दर्द का अहसास दिला
मुझ तक ले आये।