भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख्वाबों के दरीचे से न अब रूप दिखाओ / रमेश 'कँवल'

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:11, 8 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश 'कँवल' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhaz...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़्वाबों के दरीचों से न अब रूप दिखाओ
आओ मेरी आग़ोशे1- मुहब्बत को सजाओ

फागुन के महीने में तमन्नाओं के मेले
फिर ग़म कदा-ए-दिल2 में लगे हैं चले आओ

मुस्तक़बिले- ज़र्रीं3 के ख़दो-ख़ाल4 संवारो
इमरोज़ को माज़ी का न आइना दिखाओ

मैं कलियों के होटों पे हूं बिखरी हुर्इ शबनम
ऐ वक़्त की किरनो, मेरा दामन न जलाओ

ऐसान हो मैं बेच दूं हाथों में हविस के
आ जाओ सनम अपनी अमानत को बचाओ।

मैं आंखे बिछाये हुये रस्ते में खड़ा हूं
ऐ गुल बदनो, मुझ से यूं कतरा के न जाओ

हर हंसते हुये फूल के चेहरे पे लिखा है
देखो मुझे, लेकिन मेरे नज़दीक न आओ

ज़ख़्मों के चमन ज़ार5 सजे हैं मेरे दिल में
ऐ देखने वालो मेरी सूरत पे न जाओ

हर चेहरा है इक काग़ज़ी गुलदान की सूरत
बेहतर है 'कंवल’ तुम न इसे हाथ लगाओ


1. गोद 2. दुखभरेदिलकाघर 3. सुनहराभविष्य 4. नाक-नक्शा
5. वाटिका