भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इस बार भी / रामकृष्ण पांडेय
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:04, 19 फ़रवरी 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकृष्ण पांडेय |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पन्ना बनाया)
इस बार भी
बेहद गर्मी है
पिछले साल की तरह
इस बार भी
बेहद परेशानी है
पिछले साल की तरह
इस बार भी
धूल है, आँधी है
पिछले साल की तरह
इस बार भी
लू ने समाँ बाँधा है
पिछले साल की तरह
इस बार भी
राह चलते पाँव जले
पिछले साल की तरह
इस बार भी
दस, बीस, तीस लोग मरे
पिछले साल की तरह
इस बार भी
जंगल का तन्त्र है
पिछले साल की तरह
इस बार भी
मारण मन्त्र है
पिछले साल की तरह