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हे प्रियतमे राधिके / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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हे प्रियतमे राधिके! तेरी महिमा अनुपम अकथ अनन्त।
युग-युग से गाता मैं अविरत, नहीं कहीं भी पाता अन्त॥
सुधानन्द बरसाता हिय में तेरा मधुर वचन अनमोल।
बिका सदा के लिये मधुर दृग-कमल कुटिल भ्रुकुटी के मोल॥
जपता तेरा नाम मधुर अनुपम मुरली में नित्य ललाम।
नित अतृप्त नयनों से तेरा रूप देखता अति अभिराम॥
कहीं न मिला प्रेम शुचि ऐसा, कहीं न पूरी मनकी आश।
एक तुझी को पाया मैंने, जिसने किया पूर्ण अभिलाष॥
नित्य तृप्त, निष्काम नित्य में मधुर अतृप्ति, मधुरतम काम।
तेरे दिव्य प्रेम का है यह जादू भरा मधुर परिणाम॥