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मिली सदा रहतीं तुम मुझमें / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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मिली सदा रहतीं तुम मुझमें, मैं तुममें रहता नित युक्त।
प्रेम-हेतु दो बने परस्पर रहते लीलासे अनुरक्त॥
दोके बिना न हो पाता यह लीला-रस-वितरण-आस्वाद॥
इसीलिये दो बने हुए नित लीला-रत रहते अविवाद।