भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमारे मनचले / हरिऔध
Kavita Kosh से
Gayatri Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:20, 17 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |अ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सब तरह की सूझ चूल्हे में पड़े।
जाँय जल उन की कमाई के टके।
जब भरम की दूह ली पोटी गई।
लाज चोटी की नहीं जब रख सके।
लुट गई मरजाद पत पानी गया।
पीढ़ियों की पालिसी चौपट गई।
चोट खा वह ठाट चकनाचूर हो।
चाट से जिस की कि चोटी कट गई।
लग गई यूरोपियन रंगत भली।
क्यों बनें हिन्दी गधो भूँका करें।
साहबीयत में रहेंगे मस्त हम।
थूकते हैं लोग तो थूका करें।