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स्त्री बनती बेटी / जयप्रकाश कर्दम

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पहले जैसी नहीं रह गयी अब मेरी बेटी
वह बदल रही है
पहनावा, खानपान की आदतें और स्वाद
सब कुछ बदल रहा है उसका
अब वह खिलौने नहीं मांगती
न चांद को पाने की जिद करती है
गुड़िया के साथ खेलना भी
उसने छोड़ दिया है अब
ट्विंकल ट्विंकल लिटिल स्टार
गाकर सुनाने वाली मेरी बेटी
अब दूसरे गीत गुनगुनाने लगी है
अब वह पहले की तरह रूठती नहीं है
न मेरे साथ ऑफिस जाने को मचलती है
चिड़ियों से भी कोई लगाव नहीं रहा अब उसका
जिनको पकड़ने के लिए
घर के आंगन में
अपने नन्हे-नन्हे पांवों पर
उन्हीं की तरह फुदकती फिरती थी
टीचर को चीटर और
टेंपल को मेंटल कहने वाली मेरी बेटी
अब बड़ी हो रही है
कल तक आड़ी-तिरछी रेखाएं खींच-खींचकर
वह घर की दीवारों को रंगती थी
मुझे घोड़ा बनाकर
मेरी पीठ पर सवारी करती थी
कभी शेर बनकर डराती थी
कभी दबे पांव पीछे से आकर
अपने कोमल हाथ मेरी आंखों पर रख
"मैं कौन हूं" पूछती थी
"आपकी शादी की अलबम में मैं क्यों नहीं हूं"
ऐसे अटपटे सवाल करती थी
अब वह ऐसा कुछ नहीं करती
बचपन की वह चेटरबॉक्स अब
बहुत कम बोलती है
ज्यादातर समय अपने कमरे में बंद
वह अपनी किताबों में खोई रहती है
बीच-बीच में कंप्यूटर पर खेलती है
अपने दोस्तों से बातें करती है
कभी-कभी अपनी त्वचा और बालों को
संवारने पर भी ध्यान देती है
घर भर की चीजों को
अस्त-व्यस्त करके रखने वाली मेरी बेटी को
बेतरतीब चीजें अच्छी नहीं लगतीं अब
हर चीज को साफ और सलीके से
रखने की नसीहत देती है
अब अपनी पसंद भी
वह मुझ पर थोपने लगी है
मुझे कब कौन से कपड़े पहनने चाहिएं
वह बताती है
मेरी अंगुली पकड़कर चलना सीखने वाली
मेरी बेटी को अब उसके साथ
मेरा चलना अच्छा नहीं लगता
अब वह कहीं भी अपने आप
या अपने दोस्तों के साथ जाना पसंद करती है
मेरी बेटी अब बड़ी हो रही है
स्कूल के अंतिम दिन साड़ी पहनकर गयी
तो पूरी स्त्री लगती थी
धीरे-धीरे वह स्त्री में तब्दील हो रही है
इस तब्दील होती स्त्री मे
मेरी बेटी कहीं खो रही है
कल वह किसी की पत्नी बनेगी
फिर मां बन जाएगी
मेरी बेटी मुझसे छिन जाएगी।