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सेंधिए / जयप्रकाश कर्दम
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नहीं आसान रहा है उन्हें पहचान पाना
आदमी की शक्ल में वे छिपे भेड़िए हैं
यकीं कैसे दिलाएं किसी को हम यहां पर
हमारे रहनुमा ही किसी के भेदिए हैं
हकूकों की हकीकत जमाने की नब्ज को
समझ पाएंगे क्या वे जो निरे पोथिए हैं
गले में हाथ डाले साथ जो चल रहा है
कौन जाने कि ब्रूटस या कि वे सेंधिए हैं।