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मेरी बारात / जयप्रकाश कर्दम

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लो मेरी बारात चली।
अरमानों की दुनियां मेरी लो अब जाती आज जली।
संग पराए हैं, अपने हैं
मृषा, सत्य भी हैं, सपने हैं
संग चले हैं बाराती बन
सुख-दु:ख जीवन में जितने हैं
डूब चला दिवसों का सूरज लो अब निशा खिली।
लो मेरी बारात चली।

खंडित हुए स्वप्न संघात
सूख चला जीवन जलजात
सज्जित चार अश्वों के रथ पर
निकली आज मेरी बारात
स्वागत में निस्तब्ध खड़े सब कूंचे और गली।
लो मेरी बारात चली।

आज जगा मैं सब सोते हैं
हंसता हूं मैं सब रोते हैं
खोया था आ मिला स्वयं से
खुद से लोग आज खोते हैं
कल तक थी पाषाण बनी जो आज मोम पिघली।
लो मेरी बारात चली।

महा समर का राही हूं मैं
आर्य सत्य सम्भाषी हूं मैं
महायुद्ध में इस जीवन के
अविजित एक सिपाही हूं मैं
नयी समर-भू चला जीतने मैं निस्पंद गति।
लो मेरी बारात चली।