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सिद्धि / मन्त्रेश्वर झा

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भीष्म पितामह जकाँ चुप रहबाक प्रतिज्ञा कयने छी
तऽ माथ पर चढ़ि शिखंडी मुक्का मारबे करत
तटस्थ बनि रहब, कि निरपेक्ष बनि रहब
त्रिशंकु बनबाक आवाहन थिक।
सफल वैह होइत अछि
केहने हो कलाकार कि साहित्यकार
जे पुरस्कार हँसोथि-हँसोथि
सिद्ध करैत अछि अपन पुंसत्व
नेता जकाँ होइत अछि थेथर
आ विधानसभा जकाँ बेरोकटोक
हल्ला मचबैत अछि
सफल होयबाक लेल आवश्यक छैक
बनायब अपन कठपिता
आ करब श्राद्धक पक्का प्रबंध।
सफल बनबाक लेल आवश्यक
नहि छैक बढ़ायब अपन नाप
आवश्यक छैक जे छोट करैत रही
काटि छाँटि अनकर अनकर नाप
गांधारी जकाँ आँखि पर पट्टी बन्हने रहब
तऽ बढ़िते रहत धृतराष्ट्रक आन्हर महत्वाकांक्षा
सुरसा-शूर्पणखाक भीड़ मे
टिकबाक लेल चाही
शेषनागक फुफकार
हनुमानक पराक्रक
आ लक्ष्मणक टहंकार।