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हमर माय, पिता आ हम / मन्त्रेश्वर झा

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ने जानल मन्त्र, ने पूजापाठ
ने धर्म, ने ईश्वर
तैयो मात्र नाम सँ भए गेलहुँ
स्वनामधन्य
जहिया सँ पड़ल नाम मन्त्रेश्वर।
जे पिता कि पित्ती कि
पितामह
देलनि से नाम,
से कहिया ने चल गेलाह
हमरा छोड़ि
अपन अपन धाम
तथापि जतबा जे भेलहुँ
से तऽ भेलहुँ
से तऽ भेलहुँ
मुदा छूटि गेल
पिताक देल ओ अमृत आदेश
जे ‘नहि छोड़ब अपन संस्कृति,
आ संस्कृत’
से बिसरि गेल सभटा
पहाड़ पर चढ़बाक हड़बड़ी मे
पकड़ैत रहलहुँ हथोड़िया दए
युगकालीन विकृति
आ गाम मे असहाय पड़लि रहलीह माय
अपन पुरखाक संचित संपत्ति
केँ ओगरैत
एक बताह घताह अनुज के
बनलि एक मात्र संबल।
हम छटपटाइत रहैत छी
माय गाम नहि छोड़तीह।
अपन बताह अंश के सहैत
रहतीह गारि मारि
अपन परिवेश नहि छोड़तीह
संस्कृत, कि संस्कृति
मन्त्र, कि ईश्वर
छथि वैह
कहियो ने बिछलनि सुख
कहियो ने गनलनि केहनो दुख
हुनके छाह मे जखन पड़ै छी
तखन चमकैत छी हमहूँ
अपन अरजल कृत्रिम प्रकाश
करैत अछि केवल मलिन
उधारैछ हमर कुद्रूप
हमर तथाकथित
अस्तित्व।