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ज्ञात अज्ञात / मन्त्रेश्वर झा

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अति परिचयात् अवज्ञा
कोनो नव बात नहि भेल
नव बात भेल अति परिचयात्
घृणा आ विद्वेषक दंश
सर्वत्र अपनो मे आ स्वयं
मे देखब पसरल
रावण आ कंस
तेँ ने कहलनि कवि कोकिल विद्यापति
‘माधव हम परिणाम निराशा’।
तेहने सन किछु कहलनि
रश्मिरथीक ओजस्वी कवि दिनकर
‘हारे को हरिनाम’
परिणाम मे निराशा आ
हारबाक नियति मे जीतैत
अछि के?
जीतबाक प्रास हारबाक
पहिल सीढ़ी तऽ नहि छी ने?
हारि गेलाह अर्जुन
महाभारत मे सभ किछु जीति
हारि गेलाह
सीताक सम्पूर्ण मर्यादा के
विखंडित कए मर्यादा पुरुषोत्तम राम
जीत हारि परिचय अपरिचय मे
आझराइत ओझराइत
कतय पहुँचैत अछि लोक
किछुओ अज्ञात ज्ञात नहि भऽ पबैत छैक
जाधरि स्वयं अज्ञात
होयबाक नहि अबैत छैक समय