भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अतीत तऽ रहैत छैक वैह / मन्त्रेश्वर झा
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:39, 24 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मन्त्रेश्वर झा |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)
अतीत तऽ रहैत छैक वैह
इतिहास बदलैत रहैत छैक।
साहित्य तऽ होइत अछि शास्वत
भाषा आ व्याकरण बदलैत रहैत छैक
गपपश, टीका टिप्पणी जल प्रवाह थिकैक
ओकर भाव-भंगिमा बदलैत रहैत छैक,
तहिया जीवेत शरदः शतम्
आशीर्वाद रहल हेतैक,
से आबक न्यूक्लियर परिवार मे
अभिशाप भऽ गेल छैक,
अवकाश प्राप्तिक काल कतेक
उल्लास रहैत छैक,
सैह अवकाश प्राप्तिक
श्राप भऽ जाइत छैक,
व्याकरण आ अर्थशास्त्र मे
ओझरायल रहब स्वाभाविक
होइत हेतैक
अपन इतिहास गढ़बे मे
पुरुषार्थ होइत छैक।