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आयल बसंत / मन्त्रेश्वर झा

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आयल वसंत संत, शीत शेष शान्त भेल
कंवल हटल, तुराइ छुटल, गामक घूर क्लान्त भेल
हीटरक मासांत भेल।
घोघ तरक सुमुखी के के खुजल, नेह खुजल
बौआ के दैया के खेत-खरिहान बढ़ल
उठा पटक खेल भेल, झगड़ा भेल मेल भेल।
बाँसुरीक तान मचल, सृष्टि नव विधान रचल
आम गाछ मज्जर के ताक भेल, लाथ भेल
प्रेम के पिपासु के गाछ-पात लाथ भेल।
रब्बी के खेत मे गृहस्थक ध्यान जुटल
सूर्यक रुखि गर्म भेल, ऋतुक नव धर्म भेल
गाछ-पात नांगट भए पशु-पक्षी गाबि उठल
पंचम स्वर सरगममे, नाचि उठल मस्त अंग
फगुआ-मन माति गेल
आयल वसंत फेर, नव वसंत आबि गेल।