भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था / उर्फी आफ़ाक़ी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:15, 29 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्फी आफ़ाक़ी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रवाँ दवाँ सू-ए-मंज़िल है क़ाफ़िला कि जो था
वही हनूज़ है यक-दश्त़ फ़ासला कि जो था

निशात-ए-गोश सही जल-तरंग की आवाज़
नफ़स नफ़स है इक आशोब-ए-कर्बला कि जो था

गया भी क़ाफ़िला और तुझ को है वही अब तक
ख़याल-ए-ज़ाद-ए-सफ़र फ़िक्र-ए-राहिला कि जो था

वो आए जाता है कब से पर घर आ नहीं जाता
वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था