भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
साँप का ज़हर पानी निकला / नित्यानंद गायेन
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नित्यानंद गायेन |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आज शाम
ठीक ७:३० बजे
निकला जब
कालेज भवन से
और चल रहा था
खोए हुए मन से
सहम कर रुक गया अचानक
सड़क पर रेंगते हुए एक
साँप को देखकर
और वह भी
डर गया था मेरे क़दमों की आहट से
अवश्य वह मुझसे पहले डरा होगा
भई मैं आदमी जो हूँ
मेरे रुकने पर वह भागने लगा
पर आदमी से कौन बच सकता है भला ?
वहीं कुचल डाला मैंने उसे
सोचा बड़ा ज़हरीला है
किन्तु मेरे
भय और क्रोध के आगे
उस साँप का ज़हर पानी निकला