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अभिनन्दन वसंत का / नीरजा हेमेन्द्र

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वासंती बयार और आम की छाँव है,
खिल उठे पलाश वन हरा-भरा गाँव है।
झूम उठे कचनार अरहर लहरा रही,
बाँसों के झुरमुट में गौरैया गा रही।
अभिनन्दन करो सब वासंती पर्व का,
पुष्प-पुष्प, डाल-डाल वसंत ऋतु आ रही।
प्रकुति का आवरण कभी धानी, कभी लाल हुआ,
साँझ का क्षितिज सतरंगी गुलाल हुआ।
पानी-सा चंचल मन डोल रहा आजकल,
छुप-छुप कर कोयलिया मदन गीत गा रही।
उठ रहा झोंपड़ी से सोंधा-सोंधा-सा धुँआ,
सिक रही रोटियाँ, जल रहा अलाव है।
वसंत के गीत हवायें गुनगुना रहीं,
नदी की सतह पर लहरें इठला रहीं।
झरने की कल-कल नई धुन सुना रही,
फूलों के रस से नव सृष्टि नहा रही,
भौरों की गुनगुन और चिड़ियों की कलरव है,
नृत्य कर रहा हृदय ज्यों गोरी के पाँव हैं।
वासंती बयार और आम की छाँव है।