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अब और नही - 1 / नीरजा हेमेन्द्र

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ओ! श्वेत लक-दक वस्त्रों में सजे
खद्दर धारी
प्ंाचवर्षीय नाटकों के महानायकों
खद्दर की भाषा
व खद्दर की परिभाषा को भी तो समझो
खादी वस्त्र नही विचार है (साभार-खादी ग्रामोद्योग के स्लोगन से)
यह तो सुनते हो
पर कितना गुनते हो
यह भी तो बताओ....
जब मंच पर खड़े हो कर
जनता को सुनाते हो
असत्य की चाशनी में लिपटे / अपने शब्द
तब जनता की पीड़ा के शब्द
कितना सुनते हो
आज जनता पराजित न होगी
न होगी आहत
बहुत सह लीं इसने
तुम्हारी भूलें व अज्ञानता
अब और नही... और नही... और नही...