भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जैसा दिखता है / भवानीप्रसाद मिश्र
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:36, 1 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवानीप्रसाद मिश्र |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पन्ना बनाया)
आसमान जैसा दिखता है
वैसा नहीं है
और न धरती
जैसी दिखती है वैसी है
ठीक नहीं कह सकता कोई
वह कैसा है यह कैसी है
मगर फिर भी अंधी आँखों बहरे कानों
हमें सब कुछ देखना-सुनना पड़ता है
ग़लत देखे–सुने में से
बेकाम का ही सही
कुछ चुनना पड़ता है!