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पश्चाताप / भवानीप्रसाद मिश्र
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मैं तुम्हें
सूने में से चुन लाया
क्या करते तुम अकेले
झेलते झमेले हवा के थोड़ी देर
हिलते डुलते उसके इशारों पर
और शायद फिर बिखर जाते
यों मैं फूल कदाचित ही
चुनता हूँ
मगर अकेले थे तुम वहां
कम से कम दो होंगे यहाँ
अभी अभी मेरे मन में मगर
यह खटका आया कि
जाये मुमकिन है कोई तितली
और न पाए वह तुम्हें वहां
जहाँ तुम उसे मिल जाते थे
या गूंजे हिर-फिर कर
कोई भौंरा आसपास
परेशानी में
यह खटका
अभी अभी मेरे मन में आया है
सोच में पढ़ गया हूँ
क्या जाने मैं तुम्हें
ठीक लाया या नहीं लाया.