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जो तेरा मेरा रिश्ता था / फ़रीद क़मर

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जो तेरा मेरा रिश्ता था
वो रिश्ता कितना सच्चा था
मैं तेरी लगन में आवारा
जब सहरा सहरा फिरता था
तू जैसे कोई बादल था
जो घिर कर मुझ पर बरसा था
तू जैसे कोई आँचल था
जो सर पे मेरे लहराया था
इस यास के तपते सहरा में
उम्मीद का तू इक साया था

ये कल तक की सब बातें हैं
ये कल तक का सब क़िस्सा था
जब तेरी समंदर आँखों में
कल शाम का सूरज डूबा था
और साहिल की नम रेत पे तूने
नाम हमारा लिक्खा था
और फिर दरिया की लहरों ने
बस मेरा नाम मिटाया था
और तूने अपने हाथों को
मेरे हाथों से छुड़ाया था
उस वक़्त मेरी इन आँखों में
इक साया सा लहराया था

वो लम्हा कितना भारी था
जब तूने मुझको छोड़ा था
वो ख्वाब जो मैंने देखे थे
हर ख्वाब वो रेज़ा रेज़ा था
उस साहिल की नम रेत पे अब
मैं बिलकुल तन्हा तन्हा था
बस सूनी सूनी आँखें थीं
और ख़ाली ख़ाली रस्ता था
उस वक़्त ये मैंने जाना था
उस वक़्त ये मैंने समझा था
तू मेरे लिए इक दुनिया थी
मैं तेरे लिए इक लम्हा था

जो तेरा मेरा रिश्ता था
वो रिश्ता कितना कच्चा था
तू मेरे बिना भी खुश खुश थी
मैं तेरे बिना भी ज़िंदा था