Last modified on 3 अप्रैल 2014, at 14:14

विधु-बदनी श्रीराधिके! / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:14, 3 अप्रैल 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

विधु-बदनी श्रीराधिके! मेरी जीवन-मूल।
तेरे विषम वियोग की चुभी हृदय में शूल॥
असहनीय अति वेदना, छिपा न रक्खी जाय!
कहना भी संभव नहीं, हु‌आ निपट असहाय॥
पूर्वपुण्य-परिपाक से पाऊँ निभृत अरण्य।
पथिक-रहित पथ, जो कभी दीर्घकाल तक शून्य॥
तो विछोह के शोक की बहे अश्रु-जल-धार।
मिश्रित घर्घर शब्द, सब पवित्र हो संसार॥