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तन कौ कन-कन मेरौ होवै / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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तन कौ कन-कन मेरौ होवै तेरे सुख कौ साधन।
प्रतिपल जीवन में होवै, बस, तेरौ सुख-आराधन॥
परम लाभ मेरौ सुख तेरौ, तेरौ सुख अतुलित धन।
तेरे सुख के अमित दुखों में, कटें सभी दुख-बन्धन॥
मो कूँ मिलैं व्याधि, पीड़ा, अपमान, नरक, भव-बन्धन।
तो कूँ जदि सुख होय नैकु जो तिन तैं हे जीवनधन!॥
तौ वे व्याधि-जातना सगरी करि अति सुख-संपादन।
देयँ परम आनंद मोय, करि तुच्छ मुक्ति-सुख तेइ छन॥
बुद्धि रमै तेरे सुख में, मन रत नित तुव सुख-चिंतन।
बिसरै अन्य कल्पना, उर में छाय रहै तव सुख-घन॥
प्रियतम-सुख अति मधुर नित्य सर्वत्र दिव्य सुख-पावन।
प्रियतम सुख हो प्रियतम हूँ तैं अधिक सुखद, मन-भावन॥