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प्रेम सदा पावन परम रहित / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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प्रेम सदा पावन परम रहित समस्त विकार।
प्रियतम सुख ही परम धन जीवन को सुचि सार॥
अति विचित्र अति ही मधुर प्रेमी को संसार।
सदा सकल दिसि प्रेमधन करत प्रेम विस्तार॥
नहिं चिन्ता नहिं बिकलता नहीं जगत को भान।
लाभ-हानि जीवन-मरन सुख-दुख सदा समान॥
सदा परस्पर मधु मिलन सदा सरस रति रंग।
सदा जगत्-विस्मृति, सदा प्रियतम-प्रेमी संग॥