भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सुनै सदा चाहे न कुछ / हनुमानप्रसाद पोद्दार
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:55, 4 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
सुनै सदा चाहे न कुछ, सहै सबै जो होय।
रहै एक-रस एक-मन प्रेम कहावत सोय॥
तन-मन-धन-अर्पण कियौ सब तुम पै ब्रजराज।
मन भावै सोई करौ हाथ तुम्हारे लाज॥