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प्रेम के आठ स्तर / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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प्रेम

सुद्ध सवकी वृाि जो कृष्न-सुखेच्छारूप।
त्यागी जन मन में उदित ‘प्रेम’ पबित्र अनूप॥

स्नेह

प्रेम बिषय कौं प्राप्त करि द्रवित करै जब चित्त।
‘स्नेह’ कहावत सो‌इ तब प्रेमी जन कौ वित्त॥
बढ़त उष्नता-ज्योति, जब घृत पूरन होय दीय।
दरस-लालसा बढ़त त्यौं स्नेह-‌उदय तें हीय॥

मान

अति नूतन माधुर्य कौ अनुभव जामें होय।
नेह पा‌इ उत्कर्षता ‘मान’ कहावत सोय॥
भाव छिपावन हृदय कौ बनै बक्र अरु बाम।
सुख उपजावत स्याम कौ धारि ‘मान’ मधु नाम॥

प्रणय

ममता की अति बुद्धि तैं मान पा‌इ उत्कर्ष।
प्रिय सौं होय अभिन्नता, बढ़त हृदय अति हर्ष॥
प्रान-बुद्धि-मन-देह जब, असन-बसन, सब काम।
रहै न प्रिय सौं पृथक कछु, होत ‘प्रनय’ तब नाम॥

राग

स्याम-मिलन की आस में दुःख परम सुख होय।
अमिलन में भासत सकल सुख अति दुखमय सोय॥
प्रनय पाय उत्कर्ष जब या स्थिति पहुँचै जाय।
नाम ‘राग’ तब धरत सो पावत प्रीति सुभाय॥

अनुराग

प्रतिपल नव दीखत जबै स्याम नित्य-‌अनुभूत।
नित नव सुंदरतर, सरस, परम मधुर, अति पूत॥
पाय परम उत्कर्ष कौं, बढ़त अमित जब राग।
प्रगटत लच्छन सहज अस, धरत नाम ‘अनुराग’॥

भाव

प्रान-त्याग हू तैं कठिन दुःख तुच्छ जब होय।
कृष्न-प्राप्ति हित लगत जब मधुर परम सुख सोय॥
स्याम-मिलन अरु स्याम-सुख-हित अति मन में चाव।
बढ़त, बढ्यौ अनुराग सो‌इ धरत नाम सुभ ‘भाव’॥

महाभाव

भाव सिखर जब उच्चतम पहुँचत सहजहिं जाय।
‘महाभाव’ सो मधुरतम परम बिमल मन-भाय॥
महाभाव के दो परम स्तर उज्ज्वल सुचि हेम।
‘मोदन’, ‘मादन’ नाम धरि प्रगटत पूरन प्रेम॥
महाभाव मादन परम दुरलभ, सहज सुतंत्र।
केवल राधा में प्रगट, कबहुँ न कहुँ अन्यत्र॥