जन्म-मरण न दुःख-सुख कुछ हैं नहीं जिसमें कभी।
बह रही रस-सुधा-धारा, नित्य प्लावित कर सभी॥
छा रहा आनन्द अनुपम, परम अतुल सदा वहाँ।
नाचते रहते निरन्तर नीलमणि नित हैं जहाँ॥
जन्म-मरण न दुःख-सुख कुछ हैं नहीं जिसमें कभी।
बह रही रस-सुधा-धारा, नित्य प्लावित कर सभी॥
छा रहा आनन्द अनुपम, परम अतुल सदा वहाँ।
नाचते रहते निरन्तर नीलमणि नित हैं जहाँ॥