भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नहीं वासना नहीं कामना / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:30, 5 अप्रैल 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हनुमानप्रसाद पोद्दार |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं वासना, नहीं कामना, नहीं रागमय किंचित्‌‌ भोग।
श्याम-सुधा-सागर पवित्र में नित एकत्वपूर्ण संयोग॥
जीवन-मरण, मिलन-बिछुडऩ की कभी न को‌ई रहती बात।
किसी बाहरी स्थिति का होता कभी न प्रिय-‌अप्रिय आघात॥
देश-कालसे कभी न होता किंचित्‌‌ भी कदापि व्यवधान।
मिले सदा रहते, अमिलन का होता कभी न किंचित्‌‌ भान॥
होता कभी न प्रेमास्पद-प्रेमी स्वामी-सेवकका भेद।
रहता सदा अभिन्न भाव शुचि, रहता नित्य पवित्र अभेद॥