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मरुथल में / अज्ञेय
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वे (क्षुप) लोक भी हो सकते हैं
वे (चट्टानें) ऊँटों की क़तार भी हो सकती हैं
वह (सिहरती हवा) पानी भी हो सकती है
मैं (मृग) मरीचिका भी हो सकता हूँ।