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बंद पलकों में मेरी सजा रे / देवी नांगरानी
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बंद पलकों में मेरी सजा रे
मेरी उम्मीद के कुछ नज़ारे
झिलमिलाते गगन के सितारे
मेरी आँखों के आँगन में आ रे
मेरे बच्चों के मामा तुम्हीं हो
चंदा मामा हो सब के दुलारे
जैसे ममता सुनाती है लोरी
प्यार से थपथपाकर सुला रे
वो तो महकाएगी मेरी बगिया
रातरानी को जाकर बुला रे
दिन उजालों में अब है नहाया
देख सूरज नया है उगा रे
देख कर मस्त नज़रें किसी की
बिन पिए ही वो मदहोश था रे
रात ‘देवी’ कटी तारे गिन-गिन
ले किरण आ गई, मुस्करा रे.