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दाँव पर अपने ही दिल को / देवी नांगरानी

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दाँव पर अपने ही दिल को हम लगाकर देखते हैं
चाहते हैं जिनको उनसे मात खा कर देखते हैं

आगे खाई पीछे खाई अब बचे तो कोई कैसे
इस मुसीबत में मुकद्दर आज़मा कर देखते हैं

हम हंसे आसानियों में खिलखिलाकर खूब, लेकिन
मुश्किलो में भी चलो हम मुस्कराकर देखते हैं

देखते थे हम तमाशा घर जला जब दूसरों का
अब तो घर की आग से दामन जला कर देखते हैं

आज़माते जो रहे अरसे से हमको उनको भी हम
आज मौका जो मिला तो आज़माकर देखते हैं

नाचते थे बनके कठपुतली कभी हम जिनके आगे
आज उनको हम इशारो पर नचा कर देखते हैं

नाचते थे बनके कठपुतली कभी हम जिनके आगे
आज उनको हम इशारो पर नचा कर देखते हैं

नाचते थे हम जिनके आगे बनके कठपुतली कभी
आज उनको हम इशारो पर नचा कर देखते हैं

रोशनी करते कभी हम ज़ुल्मतों में दिल जलाकर
तो कभी दीपक दुआओं के जलाकर देखते हैं

पांव में मजबूरियों की है पड़ी ज़ंजीर ‘देवी’
चाल की रफ्तार लेकिन हम बढ़ा कर देखते हैं