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मैं ख़ुशी से रही बेख़बर / देवी नांगरानी
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मैं ख़ुशी से रही बेख़बर
ग़म के आँगन में था मेरा घर
रक्स करती थीं ख़ुशियाँ जहाँ
ग़म उन्हें ले गया लूटकर
आशियाँ ढूँढते-ढूँढते
खो दिया मैंने अपना ही घर
गुफ़्तगू जिनसे होती रही
उनको देखा नहीं आँख भर
चोट चाहत को ऐसी लगी
टुकड़े-टुकड़े हुई टूट कर
कैसे परवाज़ ‘देवी’ करे
नोचे सैयाद ने उसके पर